रोहतक। बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय रोहतक एवं भारतीय शिक्षण मंडल, हरियाणा प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन विश्वविद्यालय में सम्पन्न हुआ। संगोष्ठी का विषय था “भारतीय ज्ञान परम्परा : विश्वगुरु भारत के लिए नाथ योगिक अंतर्दृष्टि और आयुर्वेदिक ज्ञान”, जिसमें प्रतिष्ठित विद्वानों, विशेषज्ञों और अध्यापकों ने सहभागिता की।
बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय कुलपति प्रोफेसर एच. एल. वर्मा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि भारत की ज्ञान परम्परा अनादि है, जिसका वैश्विक महत्व आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना प्राचीन काल में था। हमारे योग, आयुर्वेद, दर्शन और नाथ परम्परा ने समूचे विश्व को जीवन जीने की कला सिखाई है। हमें विश्वगुरु बनने के लिए अपनी सांस्कृतिक जड़ों से गहराई से जुडऩा होगा। प्राचीन शिक्षा प्रणालियाँ जैसे तक्षशिला और गुरुकुल की व्यवस्था हमारे गौरव का प्रतीक थीं। आज भारत वैश्विक मंच पर सुपर पावर के रूप में उभर रहा है, परंतु अगर हमें प्रथम स्थान प्राप्त करना है, तो शिक्षा ही सबसे महत्वपूर्ण साधन है। नई शिक्षा नीति के माध्यम से हम अपनी पुरानी ज्ञान परम्परा को आधुनिक संदर्भों में पुनर्परिभाषित कर सकते हैं। हमें अपनी युवा पीढ़ी को इस दिशा में प्रेरित करना होगा ताकि हम पुन: विश्वगुरु भारत का स्वप्न साकार कर सकें।
मुख्य वक्ता डॉ. रवि प्रकाश ने नाथ योग की साधना पद्धतियों और उनके स्वास्थ्य लाभ पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि नाथ योग केवल आसनों और प्राणायाम तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्म-उन्नति, मानसिक स्थिरता और विश्व कल्याण की एक महान जीवनशैली है। जब व्यक्ति अपने भीतर के बंधनों को तोडक़र आत्मबोध की यात्रा पर निकलता है, तभी नाथ योग का वास्तविक स्वरूप प्रकट होता है। हमें इस परम्परा को केवल शारीरिक कसरत तक सीमित करने की भूल नहीं करनी चाहिए।
डॉ. श्रेयांश द्विवेदी ने संस्कृत और आयुर्वेद की महत्ता पर कहा कि आयुर्वेद केवल एक चिकित्सा पद्धति नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवनशैली का नाम है। हमें आयुर्वेद को प्रचारित करने के लिए संस्कृत भाषा को अपनाना ही होगा, क्योंकि इसके मूल ग्रन्थ संस्कृत में ही हैं। यदि हम संस्कृत को भूलते हैं, तो आयुर्वेद का विशाल ज्ञान भी लुप्त हो जाएगा। हमें संकल्प लेना होगा कि इस दिशा में नवाचार और प्रयोग कर इसे जन-जन तक पहुँचाएँ।
प्रो. बाबूराम, हिन्दी विभाग ने भारतीय साहित्य में नाथ परम्परा के योगदान पर चर्चा करते हुए कहा कि नाथ पंथ की साहित्यिक परंपरा अद्भुत है। गोरखनाथ, चौरंगीनाथ और अन्य सिद्ध महापुरुषों की रचनाएँ भारतीय काव्य और दर्शन को समृद्ध करती हैं। इन्हें आधुनिक युवाओं तक पहुँचाना हमारी जिम्मेदारी है।
विशिष्ट वक्ताओं में वैद्य सत्यप्रकाश ने नाड़ी परीक्षण की प्राचीन विधियों के वैज्ञानिक पहलुओं पर कहा कि नाड़ी परीक्षण एक अत्यंत सूक्ष्म और गहन पद्धति है, जिसमें शरीर के भीतर चल रही गतिविधियों को अनुभव किया जाता है। आधुनिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में इसकी व्याख्या करना आवश्यक है, ताकि इसके वैज्ञानिक आधार को समझाया जा सके।
प्रो. आनन्द शर्मा, प्रबंधन विभाग, केन्द्रीय विश्वविद्यालय, महेन्द्रगढ़, ने भारतीय प्रबंधन पद्धतियों में योग और ध्यान की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय प्रबंधन में योग और ध्यान के सिद्धांत सदियों से सफल नेतृत्व और संतुलित निर्णय के आधार रहे हैं। हमें इन्हें आधुनिक कॉर्पोरेट व्यवस्थाओं में भी शामिल करना चाहिए, ताकि संगठनात्मक स्तर पर भी मानसिक शांति और कार्यकुशलता को बढ़ाया जा सके। गणपति संगठन मंत्री हरियाणा, पंजाब व दिल्ली (भारतीय शिक्षण मंडल) ने उपस्थित होकर संगोष्ठी की गरिमा को बढ़ाया। उन्होंने कहा कि भारतीय शिक्षण मंडल का उद्देश्य भारतीय ज्ञान, संस्कार और संस्कृति को पुनर्जीवित कर शैक्षिक व्यवस्था में स्थापित करना है। नाथ योग और आयुर्वेद हमारे आत्मिक और शारीरिक स्वास्थ्य के अद्भुत स्रोत हैं, जिन्हें आधुनिक पीढ़ी तक पहुँचाना अनिवार्य है।
