प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कोयंबटूर, तमिलनाडु में दक्षिण भारत प्राकृतिक कृषि शिखर सम्मेलन 2025 को संबोधित किया

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कोयंबटूर, तमिलनाडु में दक्षिण भारत प्राकृतिक कृषि शिखर सम्मेलन 2025 को संबोधित किया

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज तमिलनाडु के कोयंबटूर में दक्षिण भारत प्राकृतिक कृषि शिखर सम्मेलन 2025 का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए, श्री मोदी ने कोयंबटूर की पावन धरती पर मरुधमलाई के भगवान मुरुगन को प्रणाम करके अपने संबोधन की शुरुआत की। उन्होंने कोयंबटूर को संस्कृति, करुणा और रचनात्मकता की भूमि बताया और इसे दक्षिण भारत की उद्यमशीलता की शक्ति का केंद्र बताया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि शहर का कपड़ा क्षेत्र राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख योगदानकर्ता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि कोयंबटूर ने अब और भी अधिक प्रतिष्ठा अर्जित की है, क्योंकि इसके पूर्व सांसद श्री सी.पी. राधाकृष्णन अब उपराष्ट्रपति के रूप में राष्ट्र का मार्गदर्शन कर रहे हैं।
श्री मोदी ने कहा कि प्राकृतिक कृषि उनके हृदय के बहुत निकट का विषय है, और उन्होंने दक्षिण भारत प्राकृतिक कृषि शिखर सम्मेलन के आयोजन के लिए तमिलनाडु के सभी किसान भाइयों और बहनों को शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित किसानों, कृषि वैज्ञानिकों, उद्योग भागीदारों, स्टार्टअप्स और नवप्रवर्तकों की उपस्थिति का आभार व्यक्त किया और सभी प्रतिभागियों को हार्दिक बधाई दी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आने वाले वर्षों में, वे भारतीय कृषि में बड़े बदलावों की कल्पना करते हैं। श्री मोदी ने कहा, “भारत प्राकृतिक खेती का वैश्विक केंद्र बनने की राह पर है।” उन्होंने कहा कि देश की जैव विविधता विकसित हो रही है और युवा अब कृषि को एक आधुनिक, व्यापक अवसर के रूप में देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह बदलाव ग्रामीण अर्थव्यवस्था को काफ़ी मज़बूत करेगा।

पिछले ग्यारह वर्षों में पूरे कृषि क्षेत्र में आए महत्वपूर्ण बदलावों पर प्रकाश डालते हुए, श्री मोदी ने बताया कि भारत का कृषि निर्यात लगभग दोगुना हो गया है और सरकार ने कृषि के आधुनिकीकरण में किसानों की सहायता के लिए हर संभव अवसर खोले हैं। इस बात पर ज़ोर देते हुए कि अकेले किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना के माध्यम से, इस वर्ष किसानों को ₹10 लाख करोड़ से अधिक की सहायता प्राप्त हुई है, श्री मोदी ने कहा कि सात वर्ष पहले पशुधन और मत्स्य पालन क्षेत्रों को केसीसी लाभों का विस्तार दिए जाने के बाद से, इन क्षेत्रों में कार्यरत लोग भी इसका व्यापक लाभ उठा रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि जैव-उर्वरकों पर जीएसटी में कमी से किसानों को और अधिक लाभ हुआ है।

प्रधानमंत्री ने बताया कि कुछ ही क्षण पहले, इसी मंच से, पीएम-किसान सम्मान निधि की 21वीं किस्त जारी की गई, जिसके तहत देश भर के किसानों को ₹18,000 करोड़ हस्तांतरित किए गए। उन्होंने बताया कि तमिलनाडु के लाखों किसानों के खातों में भी धनराशि पहुँच गई है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस योजना के तहत अब तक छोटे किसानों के बैंक खातों में सीधे ₹4 लाख करोड़ हस्तांतरित किए जा चुके हैं, जिससे वे अपनी विभिन्न कृषि आवश्यकताओं को पूरा कर पा रहे हैं। उन्होंने इस पहल से लाभान्वित हुए करोड़ों किसानों को शुभकामनाएँ दीं।

21वीं सदी की कृषि की ज़रूरत बताते हुए, प्रधानमंत्री ने प्राकृतिक खेती के विस्तार पर ज़ोर देते हुए कहा कि हाल के वर्षों में, बढ़ती माँग के कारण खेतों और कृषि से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में रसायनों का इस्तेमाल तेज़ी से बढ़ा है। श्री मोदी ने कहा कि रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता कम हो रही है, मिट्टी की नमी प्रभावित हो रही है और साल दर साल खेती की लागत बढ़ रही है। उन्होंने आगे ज़ोर देकर कहा कि इसका समाधान फसल विविधीकरण और प्राकृतिक खेती में निहित है।

मिट्टी की उर्वरता को पुनर्जीवित करने और फसलों के पोषण मूल्य को बढ़ाने के लिए, प्रधानमंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि देश को प्राकृतिक खेती के मार्ग पर आगे बढ़ना होगा। उन्होंने कहा कि यह एक दृष्टि और आवश्यकता दोनों है। तभी हम अपनी जैव विविधता को आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित कर सकते हैं। प्रधानमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि प्राकृतिक खेती हमें जलवायु परिवर्तन और मौसम के उतार-चढ़ाव का सामना करने में मदद करती है, हमारी मिट्टी को स्वस्थ रखती है और लोगों को हानिकारक रसायनों से बचाती है। उन्होंने कहा कि आज का कार्यक्रम इस महत्वपूर्ण मिशन को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है।

इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि भारत सरकार किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए सक्रिय रूप से प्रोत्साहित कर रही है, श्री मोदी ने बताया कि एक वर्ष पहले, केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन शुरू किया था, जिससे अब तक लाखों किसान जुड़ चुके हैं। उन्होंने बताया कि इस पहल का सकारात्मक प्रभाव विशेष रूप से दक्षिण भारत में दिखाई दे रहा है, जहाँ अकेले तमिलनाडु में लगभग 35,000 हेक्टेयर भूमि पर अब जैविक और प्राकृतिक खेती हो रही है।

प्रधानमंत्री ने ज़ोर देकर कहा, “प्राकृतिक खेती एक स्वदेशी भारतीय अवधारणा है—यह कहीं और से आयातित नहीं है—बल्कि यह परंपरा से उपजी है और पर्यावरण के अनुकूल है।” उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि दक्षिण भारत के किसान पंचगव्य, जीवामृत, बीजामृत और मल्चिंग जैसी पारंपरिक प्राकृतिक कृषि पद्धतियों को लगातार अपना रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये पद्धतियाँ मृदा स्वास्थ्य में सुधार करती हैं, फसलों को रसायन मुक्त रखती हैं और लागत कम करती हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि श्री अन्न (बाजरा) की खेती को प्राकृतिक खेती के साथ जोड़ना धरती माता की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने बताया कि तमिलनाडु में भगवान मुरुगन को शहद और श्री अन्न से बनी तेनुम थिनै मावुम का भोग लगाया जाता है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि तमिल क्षेत्रों में कंबू और समाई, केरल और कर्नाटक में रागी, और तेलुगु भाषी राज्यों में साजा और जोन्ना जैसे बाजरे पीढ़ियों से पारंपरिक आहार का हिस्सा रहे हैं।

श्री मोदी ने ज़ोर देकर कहा कि सरकार इस सुपरफ़ूड को वैश्विक बाज़ारों तक पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध है और प्राकृतिक एवं रसायन-मुक्त खेती इसकी अंतर्राष्ट्रीय पहुँच बढ़ाने में अहम भूमिका निभाएगी। उन्होंने कहा कि इस शिखर सम्मेलन में ऐसे प्रयासों पर चर्चा ज़रूर होनी चाहिए।

एकल-फसलीय कृषि के स्थान पर बहु-फसलीय कृषि को बढ़ावा देने की अपनी निरंतर अपील को दोहराते हुए, प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया कि दक्षिण भारत के कई क्षेत्र इस संबंध में प्रेरणा स्रोत रहे हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि केरल और कर्नाटक के पहाड़ी क्षेत्रों में बहु-मंजिला कृषि के उदाहरण स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। श्री मोदी ने बताया कि एक ही खेत में नारियल, सुपारी और फलों के पौधे उगाए जाते हैं, और उसके नीचे मसाले और काली मिर्च उगाई जाती है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि छोटे भूखंडों पर इस तरह की एकीकृत खेती प्राकृतिक खेती के मूल दर्शन को दर्शाती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि कृषि के इस मॉडल को अखिल भारतीय स्तर पर बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उन्होंने राज्य सरकारों से आग्रह किया कि वे इस बात पर विचार करें कि इन प्रथाओं को देश के विभिन्न क्षेत्रों में कैसे लागू किया जा सकता है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि दक्षिण भारत कृषि का एक जीवंत विश्वविद्यालय रहा है। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र दुनिया के कुछ सबसे पुराने कार्यशील बांधों का घर है और कलिंगारायण नहर का निर्माण 13वीं शताब्दी में यहीं हुआ था। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस क्षेत्र के मंदिरों के तालाब विकेंद्रीकृत जल संरक्षण प्रणालियों के आदर्श बन गए हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस भूमि ने हज़ारों साल पहले कृषि के लिए नदी के पानी का नियमन करके वैज्ञानिक जल इंजीनियरिंग का बीड़ा उठाया था। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि देश और दुनिया के लिए प्राकृतिक खेती का नेतृत्व भी इसी क्षेत्र से उभरेगा।

इस बात पर ज़ोर देते हुए कि एक विकसित भारत के लिए एक भविष्योन्मुखी कृषि पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण हेतु सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है, प्रधानमंत्री ने किसानों से “एक एकड़, एक मौसम” प्राकृतिक खेती शुरू करने और उसका अभ्यास करने तथा उसके परिणामों के आधार पर आगे बढ़ने का आग्रह किया। उन्होंने वैज्ञानिकों और अनुसंधान संस्थानों से प्राकृतिक खेती को कृषि पाठ्यक्रम का एक अभिन्न अंग बनाने की अपील की और उन्हें किसानों के खेतों को जीवंत प्रयोगशालाओं के रूप में उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया। प्रधानमंत्री ने ज़ोर देकर कहा, “हमारा लक्ष्य प्राकृतिक खेती को पूरी तरह से विज्ञान-समर्थित आंदोलन बनाना होना चाहिए।”

श्री मोदी ने इस अभियान में राज्य सरकारों और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) की महत्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में देश में 10,000 एफपीओ का गठन किया गया है। उनके सहयोग से, छोटे किसान समूह बनाए जा सकते हैं, जिन्हें सफाई, पैकेजिंग और प्रसंस्करण की सुविधाओं से सुसज्जित किया जा सकता है और उन्हें सीधे ई-नाम जैसे ऑनलाइन बाज़ारों से जोड़ा जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि जब पारंपरिक ज्ञान, वैज्ञानिक शक्ति और सरकारी सहयोग एक साथ आएंगे, तो किसान समृद्ध होंगे और धरती माता स्वस्थ रहेगी।

प्रधानमंत्री ने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि यह शिखर सम्मेलन देश में प्राकृतिक खेती को नई दिशा देगा। उन्होंने कहा कि इस मंच से नए विचार और समाधान सामने आएंगे।

इस कार्यक्रम में तमिलनाडु के राज्यपाल श्री आर.एन. रवि, केंद्रीय मंत्री डॉ. एल. मुरुगन सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

दक्षिण भारत प्राकृतिक कृषि शिखर सम्मेलन 2025, जो 19 से 21 नवंबर 2025 तक आयोजित किया जा रहा है, तमिलनाडु प्राकृतिक कृषि हितधारक मंच द्वारा आयोजित किया जा रहा है। इस शिखर सम्मेलन का उद्देश्य टिकाऊ, पर्यावरण-अनुकूल और रसायन-मुक्त कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना और भारत के कृषि भविष्य के लिए एक व्यवहार्य, जलवायु-अनुकूल और आर्थिक रूप से टिकाऊ मॉडल के रूप में प्राकृतिक और पुनर्योजी कृषि की ओर बदलाव को गति प्रदान करना है।

यह शिखर सम्मेलन किसान-उत्पादक संगठनों और ग्रामीण उद्यमियों के लिए बाज़ार संपर्क बनाने पर भी केंद्रित होगा, साथ ही जैविक आदानों, कृषि-प्रसंस्करण, पर्यावरण-अनुकूल पैकेजिंग और स्वदेशी तकनीकों में नवाचारों का प्रदर्शन भी करेगा। इस कार्यक्रम में तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल, तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के 50,000 से अधिक किसान, प्राकृतिक कृषि व्यवसायी, वैज्ञानिक, जैविक आदान आपूर्तिकर्ता, विक्रेता और हितधारक भाग लेंगे।